ग्रामोफोन पिन का रहस्य – ब्योमकेश बक्शी की जासूसी कहानी

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Author
Saradindu Bandyopadhyay
Language
Hindi

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Description

‘‘वह सब व्यर्थ ही जाता, क्योंकि उनका अपराध किसी भी अदालत में साबित नहीं किया जा सकता था।’’

‘‘लेकिन उन्हें पकड़ने से ग्रामाफोन-पिन रहस्य के हत्यारे का तो पता लग सकता था?’’

ब्योमकेश ने अपनी मुसकान दबाते हुए कहा, ‘‘यदि यह संभव होता तो मैं निजी तौर पर उन्हें भाग जाने में सहायता नहीं करता।’’

‘‘तो क्या तुमने उन्हें भागने में मदद की है?’’

‘‘हाँ, चूँकि आशु बाबू उनके शिकार होने से बच गए थे। फिर वे दोनों तो भागने की योजना बना ही चुके थे। मैं आज सुबह विलास बाबू के घर गया था और बातों ही बातों में मैंने उन्हें बता दिया कि मैं पहले ही बहुत कुछ जान चुका हूँ, यदि वे तुरंत नहीं भाग जाते हैं तो उन्हें जेल जाना पड़ सकता है। विलास बाबू बुद्धिमान व्यक्ति हैं। उन्होंने देर नहीं की। शाम को ही अपनी साथी के साथ ट्रेन पकड़ ली।’’

‘‘लेकिन उनके भागने से तुम्हें फायदा क्या हुआ?’’

ब्योमकेश जोर की अँगड़ाई लेते हुए बोला, ‘‘अधिक लाभ तो नहीं हुआ, अलबत्ता उनकी निकृष्ट योजना के चक्र में मैंने एक छोटा तार जरूर घुसा दिया है। विलास बाबू खाली हाथ तो जाने वाले हैं नहीं, वे अपने साथ अपने सभी मुवक्किलों का पैसा भी ले गए हैं। अब तक, मैं समझता हूँ, पुलिस ने उन्हें बर्दवान में पकड़ लिया होगा, क्योंकि पुलिस को इसकी पूर्व सूचना थी। जो भी हो, वह कम-से-कम दो साल की जेल से तो नहीं बच सकते। उनकी सही सजा तो उम्रकैद होनी चाहिए, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में यह संभव नहीं है तो कम-से-कम दो वर्ष की कैद कुछ नहीं से तो अच्छा ही है।’’

दूसरे दिन प्रातः हमारे यहाँ एक अजनबी का आगमन हुआ। मैंने चाय पीकर अखबार खोला ही था कि दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी।

ब्योमकेश ने सजग होकर देखा और जोर से बोला, ‘‘कौन है? कृपया अंदर आ जाएँ।’’ शालीन वस्त्रों में एक तीस-बत्तीस साल के युवक ने प्रवेश किया। उसका चेहरा दाढ़ी-मूँछ से साफ था और जिस अंदाज से वह अंदर आया था, उससे लगता था कि वह एथलीट है। मुसकराते हुए उसने अभिवादन किया और बोला, ‘‘आशा है, सुबह-सुबह आने से आपको कोई असुविधा नहीं होगी। मेरा नाम प्रफुल्ल रॉय है और मैं बीमा एजेंट हूँ’’ और कुरसी पर बैठकर जोर से हँस दिया। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो शांत रहने पर प्रियदर्शी लगते हैं, किंतु हँसते ही उनका चेहरा विकृत हो जाता है। प्रफुल्ल रॉय उन्हीं लोगों में से एक था। वह शायद पान का शौकीन था, क्योंकि हँसते ही उसके दाँतों में कत्थे की लाली दिखाई दे गई। मैं यही सोच रहा था कि एक अच्छा-खासा चेहरा कैसे इतना विकृत किया जा सकता है?

‘‘मैं बीमा एजेंट जरूर हूँ, पर मेरे आने का कारण दूसरा है। आजकल यद्यपि हम लोगों के जाने से हमारे अपने ही मित्र-संबंधी दरवाजा बंद कर लेते हैं। मैं उनको दोष भी नहीं देता; किंतु विश्वास कीजिए, मैं इस समय बीमा एजेंट बनकर नहीं आया हूँ। आप, मैं समझता हूँ, प्रसिद्ध डिटेक्टिव ब्योमकेश बाबू हैं और मैं आपके पास एक निजी मामले में राय लेने के लिए आया हूँ श्रीमान! यदि आपको कोई आपत्ति न हो तो…।’’

ब्योमकेश के होंठों पर एक उलझन की रेखा उभर आई, वह बोला, ‘‘लेकिन, परामर्श से पूर्व एडवांस वगैरह भी होता है, जनाब!’’

प्रफुल्ल रॉय ने तुरंत अपने बटुए से दस रुपए का नोट निकालकर मेज पर रख दिया और बोला, ‘‘मैं जो आपसे कहना चाहता हूँ, वह नितांत निजी तो नहीं है, लेकिन…’’ वह कहते-कहते रुककर मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगा। मैं जैसे ही उठने को हुआ तो ब्योमकेश ने सधे शब्दों में कहा, ‘‘ये मेरे सहयोगी और मित्र हैं। आप जो भी कहना चाहते हैं, इनके सामने कह सकते हैं?’’

प्रफुल्ल रॉय बोला, ‘‘क्यों नहीं? जरूर! चूँकि ये सहयोगी हैं तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। आप…? ओह! क्षमा कीजिए, याद आया अजित बाबू हैं! मैं नहीं जानता था कि आप ब्योमकेश बाबू के मित्र भी हैं। आप कितने भाग्यशाली हैं, इतने प्रसिद्ध डिटेक्टिव के साथ काम करते हैं, इतने विचित्र मामलों और अपराधों को सुलझाने में सहायता करते हैं। आपके जीवन में तो शायद ही कभी नीरस क्षण आता हो! मैं कभी-कभी सोचता हूँ कि बीमा एजेंट का निरर्थक जीवन त्यागकर आप जैसा ही कोई काम शुरू करूँ।’’ उसने जेब से पान की डिबिया निकालकर एक पान मुँह में दबा लिया।

ब्योमकेश इस सारे वृत्तांत से व्याकुल हो रहा था। उसने परेशान होते हुए कहा, ‘‘मैं समझता हूँ कि आप अब अपना केस बताएँ, जिस पर आप मेरा परामर्श चाहते हैं।’’

प्रफुल्ल रॉय ने तुरंत उत्तर देते हुए कहा, ‘‘सर! मैं उसी पर आ रहा हूँ। जैसा कि मैंने बताया कि मैं बीमा एजेंट हूँ और बंबई की कंपनी ‘ज्वैल इंश्योरेंस’ का काम करता हूँ। मैंने कंपनी को दस से बारह लाख रुपए का फायदा पहुँचाया। इसके पुरस्कारस्वरूप कंपनी ने मुझे कलकत्ता में अपने कार्यालय के अध्यक्ष के रूप में भेजा है। पिछले आठ महीनों से इस शहर में स्थायी रूप से रह रहा हूँ।

‘‘कुछ महीने तो मेरे कामकाज में अच्छे बीते। फिर एकाएक समस्या पैदा हो गई। मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन प्रतियोगी कंपनी का एक कर्मचारी इसके लिए जिम्मेदार है। मैं कंपनी के छोटे-मोटे कमीशन के मामले नहीं देखता। मैं केवल बड़े कमीशन के एकाउंट देखता हूँ। अब हुआ यों कि इस व्यक्ति ने मेरे बड़े ग्राहकों को चुराना शुरू कर दिया। जहाँ भी मैं जाता, उसके बाद यह व्यक्ति जाकर मेरी कंपनी के बारे में झूठी शिकायतें करके मेरे ग्राहकों को मेरे हाथों से छीन लेता। धीरे-धीरे बड़े कमीशनों की बीमा पॉलिसी मेरे हाथों से जाने लगीं। 

‘‘इस तरह चार-पाँच महीने और बीत गए। मुझे ऊपर से काम बढ़ाने के लिए दबाव आने लगा, लेकिन इस व्यक्ति से छुटकारे का कोई उपाय नहीं सूझा। यदि मैं कानून का सहारा लेकर उस पर मुकदमा करता तो मेरी कंपनी की छवि खराब होती है। पर मुझे किसी भी तरह खून पीने वाली इस जोंक को उखाड़ फेंकना है। कुछ महीने इसी उधेड़-बुन में बीत गए, फिर…’’

चुपके से प्रफुल्ल रॉय ने अपने बटुए से दो चिट निकालीं और छोटी चिट को ब्योमकेश की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘लगभग दो सप्ताह पहले इस विज्ञापन ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया। आपने शायद न देखा हो और आप देखते भी क्यों? लेकिन सर! है तो यह एक छोटा सा वर्गीकृत विज्ञापन, पर इसे पढ़ते ही मैं खुशी से उछल पड़ा। क्या मेरा केस भी शरीर में काँटे जैसा ही है? मैंने सोचा, देखूँ मेरे शरीर का काँटा भी यदि निकाल सके? मैं जिस परेशानी में फँसा हूँ, उसमें तो कोई मुझसे जादुई ताबीज पहनने को भी कहता तो मैं पहन लेता।’’

मैंने गरदन तिरछी करके देखा, वह उसी शरीर में काँटे के विज्ञापन की क्लिपिंग थी। प्रफुल्ल रॉय बोलता गया, क्या आपने पढ़ा है? है न विचित्र? जो भी है, निर्धारित दिन यानी पिछले सप्ताह शनिवार मैं गया और क्रिसमस ट्री की तरह उस लैंपपोस्ट से टिककर खड़ा रहा। खड़े रहने में क्या दुर्गति हुई! खड़े-खड़े मेरे पाँव सो गए। पर सब बेकार गया। कोई नहीं आया। अंत में निराश होकर जब मैं चलने लगा तो मुझे पता चला कि मेरी पॉकेट में एक पत्र है।’’

उसने दूसरी चिट ब्योमकेश की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘पढ़कर देख लीजिए, यह है वह पत्र।’’

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