ग्रामोफोन पिन का रहस्य – ब्योमकेश बक्शी की जासूसी कहानी

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Author
Saradindu Bandyopadhyay
Language
Hindi

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Description

घटना की शुरुआत इस प्रकार हुई : करीब डेढ़ महीने पहले सुकिया स्ट्रीट निवासी जयहरि सान्याल सुबह के समय कार्नवालिस रोड पर चल रहे थे। सड़क पार करने के लिए जैसे ही उन्होंने कदम बढ़ाया, वे एकाएक औंधे मुँह सड़क पर गिर गए। उस समय सड़क पर काफी भीड़ थी। उन्हें सड़क से उठाकर एक ओर लाया गया तो पता चला कि उनकी मृत्यु हो चुकी है। उनकी एकाएक मृत्यु की जब खोजबीन की गई तो देखा गया कि उनके सीने पर खून की बूँद है, पर आस-पास किसी घाव का कोई निशान नहीं पाया गया। पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में अप्राकृतिक मृत्यु घोषित करके लाश को अस्पताल भेज दिया। पोस्टमार्टम में एक विचित्र तथ्य सामने आया, जिससे पता चला कि मौत ग्रामाफोन के छोटे से पिन (सुई) से हुई है, क्योंकि वह हृदय में पाई गई, जो गढ़कर अंदर पहुँची थी। यह पिन कैसे हृदय के अंदर पहुँची? इस प्रश्न के उत्तर में हथियार विशेषज्ञों ने अपने निर्णय में बताया कि इसे छोटी रिवॉल्वर या उसी प्रकार के यंत्र से सीने के ठीक सामने, बिल्कुल पास से मारा गया है, जिससे पिन मृत व्यक्ति की खाल और मांस से होकर सीधा हृदय में पहुँची और उसकी तत्काल मृत्यु हो गई।

अखबारों में इस वृत्तांत को पढ़कर काफी शोरगुल हुआ था। इसके बाद मृत व्यक्ति की संक्षिप्त जीवनी भी प्रकाशित हुई और पत्रों में ऐसी अटकलें भी छापी गईं कि यह वास्तव में हत्या ही है या कुछ और? अगर हत्या है तो इसको कैसे अंजाम दिया गया? लेकिन एक बात, जो कोई नहीं बता पाया कि इस हत्या के पीछे उद्देश्य क्या था और हत्यारे को इससे क्या लाभ हुआ? अखबारों में यह भी छपा कि पुलिस ने अपनी जाँच शुरू कर दी है। चाय के अड्डों से अब वह उड़ने लगा कि यह झाँसापट्टी के सिवाय कुछ नहीं है। उस व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ा था और अखबारों के पास कोई सनसनीखेज समाचार नहीं था तो उन्होंने यह कहानी गढ़कर तिल को ताड़ बना दिया है। लेकिन आठ दिनों के बाद अखबारों ने अपने मुखपृष्ठों पर डेढ़ इंच के बड़े-बड़े टाइप में जो समाचार छापा, उसको पढ़कर कलकत्ता का संभ्रांत तबका भी चौंककर सोचने पर मजबूर हो गया। चाय के अड्डों के धुरंधर भी सन्नाटे में आ गए। अफवाहों, आशंकाओं और अटकलों का बाजार बरसात के कुकुरमुत्तों की भाँति तेजी से बढ़ने लगा। दैनिक ‘कालकेतु’ ने लिखा—

‘ग्रामाफोन-पिन ने फिर से तांडव शुरू किया।’

‘अजीब और रहस्यमय घटनाओं से लोग भयभीत।’

‘कलकत्ता की सड़कें पूर्णतः असुरक्षित’। ‘कालकेतु’ के पाठकों को याद होगा कि कुछ दिन पहले श्री जयहरि सन्याल की सड़क पार करते समय एकाएक मृत्यु हो गई थी। जाँच से पता चला कि एक ग्रामाफोन-पिन उनके हृदय में घुसा मिला और डॉक्टर ने उस पिन को ही मृत्यु का कारण घोषित किया था। उस समय हमने संदेह उजागर किया था कि वह कोई साधारण दुर्घटना नहीं है और उसके पीछे कोई छुपा भयानक षड्यंत्र है। हमारा वह संदेह अब पक्का हो गया है। कल ठीक वैसी ही अजीब दुर्घटना घटी है। प्रख्यात व्यवसायी कैलाश चंद्र मौलिक कल शाम लगभग पाँच बजे मैदान के निकट गाड़ी से जा रहे थे। रेड रोड पर उन्होंने अपनी कार रुकवाई और पैदल चलने के लिए गाड़ी से बाहर आए। एकाएक उनके मुँह से एक चीख निकली और वे जमीन पर गिर पड़े। उनके ड्राइवर और अन्य लोग उन्हें उठाकर कार तक लाए, लेकिन तब तक उनका प्राणांत हो गया। यह देखकर वहाँ एकत्र सभी लोग घबरा गए, लेकिन भाग्यवश जल्दी ही पुलिस आ गई। कैलाश बाबू रेशमी कुरता पहने हुए थे और पुलिस को उनके सीने पर खून की बूँद दिखी। इस भय से कहीं यह अस्वाभाविक मृत्यु न हो, पुलिस ने तुरंत लाश को अस्पताल भेजा। डॉक्टर की रिपोर्ट में कहा गया कि मृतक के हृदय में ग्रामाफोन पिन घुसा पाया गया और बताया गया कि वह पिन नजदीक से उनके सीने में सामने से ‘शूट’ किया गया था। यह स्पष्ट है कि यह कोई अप्रत्याशित अपराध नहीं है और यह कि जघन्य हत्यारों का गिरोह शहर में आ गया है। यह कहना मुश्किल है कि ये कौन लोग हैं? और कलकत्ता के इन जाने-माने नागरिकों को मारने में उनका प्रयोजन क्या हो सकता है? लेकिन जो वास्तव में अनोखा है, वह है उनकी हत्या का तरीका। इसके अलावा, हथियार और उसका इस्तेमाल भी रहस्य के परदे में छिपा हुआ है।

कैलाश बाबू अत्यंत उदार और मिलनसार सज्जन पुरुष थे। यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि उन जैसे व्यक्ति का कोई अहित चाहता हो। मृत्यु के समय उनकी आयु केवल अड़तालीस वर्ष थी। कैलाश बाबू विधुर थे। उनके बाद उनकी संपत्ति की स्वामी उनकी बेटी होगी। हम कैलाश बाबू की बेटी और दामाद के लिए गहन सहानुभूति प्रकट करते हैं, जो उनकी मृत्यु से शोकाकुल हैं।

पुलिस अपनी जाँच-पड़ताल कर रही है। फिलहाल कैलाश बाबू के ड्राइवर को संदेह के चलते हिरासत में ले लिया गया है।

इसके बाद लगभग दो सप्ताह तक अखबारों में काफी उत्तेजना फैली रही। पुलिस जोर-शोर से अपराधी की तलाश में व्यस्त रही, लेकिन हाथ-पल्ले कुछ पड़ता न देख करके भी हैरान और परेशान पुलिस खोजबीन में लगी रही; लेकिन अपराधी का कोई सुराग पाना तो दूर, वह ग्रामाफोन-पिन के गहन रहस्य के बारे में भी कोई प्रकाश नहीं डाल पाई।

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