ग्रामोफोन पिन का रहस्य – ब्योमकेश बक्शी की जासूसी कहानी

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Author
Saradindu Bandyopadhyay
Language
Hindi

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Description

ब्योमकेश बोला, ‘‘घबराइए नहीं, आप घर में पूर्ण सुरक्षित हैं। हाँ, यदि आप दरबान चाहते हों तो रख सकते हैं।’’

आशु बाबू बोले, ‘‘क्या मैं घर से बाहर बिल्कुल नहीं निकल सकता?’’

ब्योमकेश कुछ क्षण सोचता रहा, फिर बोला, ‘‘यदि आप घर से बाहर निकलना ही चाहते हैं तो केवल फुटपाथ का ही प्रयोग करें। किसी भी स्थिति में सड़क का प्रयोग न करें। यदि करते हैं तो मैं आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं ले पाऊँगा।’’

आशु बाबू के चले जाने के बाद ब्योमकेश काफी देर तक त्यौरी चढ़ाकर विचारों में डूबा रहा। इसमें कोई संदेह नहीं कि फिलहाल उसके मस्तिष्क के लिए उन्हें काफी मसाला मिल गया था। इसलिए मैंने उसे छेड़ना नहीं चाहा। कोई आधा घंटे के बाद उसने मुँह उठाकर देखा और बोला, ‘‘तुम सोच रहे हो कि मैंने आशु बाबू को घर से निकलने के लिए मना कर दिया और मैं कैसे इस निर्णय पर आया कि वे केवल घर में ही सुरक्षित रहेंगे?’’

मैंने चौंककर देखा और मेरे मुँह से निकल गया, ‘‘हाँ।’’

ब्योमकेश ने कहा, ‘‘ग्रामाफोन-पिन केस में यह स्पष्ट है कि सभी हत्याएँ सड़क पर हुई हैं। सड़क के किनारे भी नहीं, बल्कि सड़क के बीच में। क्या तुमने सोचा, ऐसा क्यों हुआ है?’’

‘‘नहीं, क्या कारण है?’’

‘‘दो कारण हो सकते हैं। पहला, कि सड़क पर मारने से इल्जाम से बच जाना आसान हो सकता है हालाँकि, यह ज्यादा मुमकिन नहीं लगता। दूसरे, हत्या का हथियार भी ऐसा है, जिसका प्रयोग केवल सड़क पर ही संभव हो।’’

मैंने उत्सुकता से पूछा, ‘‘किस तरह का हथियार हो सकता है?’’

ब्योमकेश बोला, ‘‘अगर यही पता लग जाए तो ग्रामाफोन-पिन का रहस्य ही न खुल जाए?’’

मेरे मस्तिष्क में एक विचार रह-रहकर उठ रहा था। मैंने कहा, ‘‘क्या कोई व्यक्ति ऐसा रिवॉल्वर रख सकता है, जिसमें गोली के स्थान पर ग्रामाफोन-पिन का इस्तेमाल हो सके?’’

ब्योमकेश ने मेरी बात की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा, ‘‘आइडिया मार्के का है। लेकिन इसमें कुछ संदेह दिखाई दे रहा है। कोई व्यक्ति, जो बंदूक और पिस्तौल इस्तेमाल करना चाहता है, वह क्यों चाहेगा? तर्क के अनुसार वह एकांत ही खोजेगा। दूसरे, बंदूक तो छोड़ो, पिस्तौल के शॉट का धमाका भी भीड़ के कोलाहल में छुप नहीं सकता। फिर गनपाउडर की महक रह जाती है। वो कहते हैं न कि एक धमाका दूसरे को छुपा सकता है, लेकिन महक कैसे छिपेगी?’’

मैंने कहा, ‘‘संभव है, वह एयरगन हो?’’

ब्योमकेश जोर से हँसा, ‘‘वाह! क्या बेहतरीन आइडिया है? कंधे पर एयरगन लटकाकर हत्या करने जाना! लेकिन क्या यह व्यावहारिक है? नहीं, मेरे प्यारे मित्र! यह इतना आसान नहीं है। यहाँ सोचने की बात यह है कि जो भी हथियार होगा, वह धमाका करेगा ही। तब कैसे उस धमाके को छुपाया जा सकता है?’’

मैंने कहा, ‘‘तुम अभी-अभी क्या कह रहे थे कि एक धमाका दूसरे को छुपा सकता है।’’

एक झटके से ब्योमकेश खड़ा हो गया और मुझे बड़ी-बड़ी आँखों से घूरने लगा और बड़बड़ाने लगा, ‘‘यह सही है, यह बिल्कुल सही है।’’

‘‘…’’

मैं चौंक उठा, ‘‘क्या बात है?’’ ब्योमकेश ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं। मैं जितना ग्रामाफोन-पिन रहस्य के बारे में सोचता हूँ, उतना ही मुझे लगता है, जैसे सारी हत्याएँ एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। एक विशेष प्रकार की समानता सभी हत्याओं में दिखाई दे रही है। हालाँकि ऊपर से ऐसा कुछ नहीं लगता।’’

‘‘वह कैसे?’’

ब्योमकेश ने उँगली पर चिह्न लगाते हुए कहा, ‘‘शुरू करें तो सभी शिकार मध्य वय के व्यक्ति थे। आशुबाबू जो घड़ी के कारण बच गए, वे भी मध्य आयु के हैं। दूसरे, सभी खाते-पीते संपन्न व्यक्ति हैं। कुछ दूसरों से अधिक धनी हो सकते हैं, किंतु निर्धन कोई नहीं था। प्रत्येक व्यक्ति की हत्या सड़क के बीचोबीच हुई, सैकड़ों की भीड़ में, और अंत में महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि सभी संतानहीन थे।’’

मैंने कहा, ‘‘तो तुम्हारा अनुमान यह है…’’

ब्योमकेश बोला, ‘‘मैंने अभी तक कोई अनुमान नहीं लगाया है। यह सब बातें मेरे अनुमान के केवल आधार हैं। तुम इन्हें संभावना कह सकते हो।’’

मैंने कहा, ‘‘लेकिन केवल इन संभावनाओं से हत्यारों को पकड़ना…’’

ब्योमकेश ने टोक दिया, ‘‘हत्यारे नहीं, अजीत! हत्यारा। बहुवचन का प्रयोग केवल प्रतिष्ठा जोड़ने के लिए है। वास्तव में व्यर्थ है। अखबारवाले भले ही हल्ला मचा रहे हैं कि इनके पीछे हत्यारों का गिरोह है, लेकिन उस गिरोह में एक ही व्यक्ति है, जो इस मानवीय हत्याओं का पोषक, गुरु और हत्यारा है। सभी हत्याओं के पीछे केवल एक ही व्यक्ति है।’’

मैं अपने संदेह को रोक नहीं पाया, ‘‘तुम यह सब इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो? क्या तुम्हारे पास कोई सबूत है?’’

ब्योमकेश ने उत्तर दिया ‘‘सबूत तो अनेक हैं, लेकिन फिलहाल एक ही पर्याप्त है। क्या यह संभव है कि सभी लोग इतनी अद्भुत दक्षता से एक ही जगह पर दागे गए हथियार से मारे जाएँ? प्रत्येक बार पिन हृदय के बीच में ही घुसा है, रंचमात्र भी, न इधर, न उधर। आशुबाबू का केस ही लो। यदि घड़ी न होती तो वह पिन कहाँ लगता? तुम्हारी नजर में कितने लोग हो सकते हैं, जो इतनी दक्षता से यह कार्य कर पाएँगे, जिनका निशाना इतना अचूक होगा? यह तो उस तरह हो गया, जैसे पानी में लकड़ी की मछली की छाया को देखकर घूमते पहिए के बीच मछली की आँख में तीर मारना। मैं समझता हूँ, तुम्हें द्रौपदी के स्वयंवर की कथा याद होगी! जरा सोचो, यह केवल अुर्जन ही कर पाया था—महाभारत काल में भी इतनी अचूक दक्षता का श्रेय केवल एक ही व्यक्ति को मिला था।’’ ब्योमकेश जब उठा तो हँस रहा था।

ड्राइंगरूम के बगलवाला कमरा ब्योमकेश का निजी कमरा था, जिसमें वह हर समय मुझे भी आने नहीं देता था। वास्तव में यह उसकी लाइब्रेरी, प्रयोगशाला, संग्रहालय और ड्रेसिंग-रूम था। उसने आशुबाबू की घड़ी उठाकर अपने कमरे की ओर जाते हुए कहा, ‘‘लंच के बाद इस केस पर मस्तिष्क लगाने के लिए पर्याप्त समय होगा, अब समय है नहाने का।’’

ब्योमकेश दोपहर में साढ़े तीन के आस-पास बाहर चला गया। मुझे नहीं मालूम कहाँ और क्यों गया? और वापस आया, तब तक अँधेरा हो चुका था। मैं उसके इंतजार में बैठा था। चाय का समय बीता जा रहा था। जैसे ही वह आया, पुत्तीराम नाश्ता ले आया। हम लोगों ने पूर्ण शांति में नाश्ता किया। हम लोगों की शाम को साथ-साथ चाय पीने की आदत थी।

ब्योमकेश ने कुरसी पर कमर टिकाते हुए चरूट जलाकर पहली बार मौन तोड़ा, ‘‘तुम्हें आशु बाबू कैसे व्यक्ति लगे?’’

मुझे प्रश्न कुछ अटपटा लगा, मैंने पूछा, ‘‘ऐसा क्यों पूछते हो? मैं समझता हूँ वे सज्जन पुरुष, काफी सहज और मिलनसार व्यक्ति हैं।’’

ब्योमकेश ने कहा, ‘‘और उनका नैतिक चरित्र?’’

मैंने उत्तर दिया, ‘‘जिस प्रकार अपने उस शराबी भानजे के बारे में उनकी नफरत देखी, मैं तो कहूँगा कि वे सीधे तथा सच्चे इनसान हैं। फिर उनकी उम्र भी हो गई है। उन्होंने विवाह भी नहीं किया। संभव है, जवानी में उन्होंने कुछ प्यार-व्यार की हरकतें की हों, लेकिन उन सबके लिए उनकी अब अवस्था नहीं है।’’

ब्योमकेश हँस पड़ा, ‘‘उनकी अवस्था न भी हो तो क्या उन बातों ने उन पर कोई रोक लगाई है? जोड़ासांको के जिस घर में आशु बाबू रोज शाम को संगीत सुनने जाते हैं, वह एक स्त्री का घर है। दरअसल यह कहना कि वह उस स्त्री का घर है, गलत है, क्योंकि आशुबाबू उसका भाड़ा भरते हैं। उस घर को संगीत संगोष्ठी स्कूल कहना भी शायद गलत होगा, क्योंकि संगोष्ठी बनाने के लिए कम-से-कम दो व्यक्तियों की दरकार होती है। यहाँ तो वे केवल एक ही है।’’

‘‘क्या बात कर रहे हो? तो बुढ़ऊ काफी रंगीन तबीयत के हैं, वाह!’’

‘‘और भी है। आशु बाबू उस स्त्री की पिछले बारह-तेरह वर्षों से देखभाल कर रहे हैं। इसलिए उनकी वफादारी पर शक नहीं किया जा सकता और जाहिर है कि बदले में उन्हें भी वही वफादारी मिली है, क्योंकि और किसी संगीत का शौकीन को घर में घुसने की इजाजत नहीं है। दरवाजे पर सख्त पहरा है।’’

मैं उत्सुकता से भर गया था, ‘‘तो क्या वास्तव में तुम संगीत-प्रेमी बनकर उस घर में गए थे? क्या देख पाए उस स्त्री को? कैसी थी देखने में?’’

ब्योमकेश बोला, ‘‘मैं एक झलक ही देख पाया। लेकिन मैं नहीं चाहता कि मैं उसके रूप का वर्णन करके तुम्हारे जैसे कुँवारे दोस्त की अनमोल रातों की नींदें उड़ा दूँ। एक ही शब्द कहूँगा, लाजवाब! उसकी आयु संभवतः 27-28 बरस की होगी। जो भी हो, मैं आशु बाबू की पसंद का कायल हो गया हूँ।’’

मैंने हँसकर कहा, ‘‘मुझे यह लग भी रहा था कि तुम्हें एकाएक आशु बाबू के निजी जीवन में इतनी दिलचस्पी क्यों हो गई है?’’

ब्योमकेश बोला, ‘‘अनियंत्रित उत्सुकता मेरी कमियों में से एक है। दूसरे, आशु बाबू का वारिस मुझे परेशान किए हुए था।’’

‘‘तो ये हैं आशु बाबू की वारिस?’’

‘‘यह मेरा अनुमान है। मैंने वहाँ एक और व्यक्ति को देखा, जिसकी आयु पैंतीस के लगभग होगी। देखने में काफी तड़क-भड़कवाला लगा। वह दरबान के पास तेजी से आया और उसके हाथ में एक पत्र देकर गायब हो गया। जो भी हो, विषय चाहे जितना भी मजेदार हो, पर इस समय हमारे लिए इतना उपयोगी नहीं है।’’

ब्योमकेश उठकर फर्श पर चक्कर लगाने लगा।

मैं समझ गया कि ब्योमकेश नहीं चाहता कि आशु बाबू के निजी जीवन की ये घटनाएँ आशु बाबू को सुरक्षा प्रदान करने के उसके प्रयासों में आड़े न आ जाएँ। मैं भी जानता था कि मानवीय मस्तिष्क कई बार ऐसी स्थितियों में अनजाने में केंद्र बिंदु से भटक जाता है। इसलिए मैंने भी विषय बदलते हुए कहा, ‘‘क्या तुम्हें घड़ी की जाँच करके कुछ मिला?’’

ब्योमकेश चलते-चलते मेरे सामने रुक गया और हल्की मुसकान के साथ बोला, ‘‘घड़ी को जाँचने के बाद मुझे तीन जानकारी मिली हैं। पहली, ग्रामाफोन-पिन साधारण एडीसन ब्रांड का है। दूसरी, उसका भार ठीक दो ग्राम है और तीसरी, घड़ी अब ठीक नहीं हो सकती। उसकी मरम्मत संभव ही नहीं है।’’

मैंने कहा, ‘‘इसका मतलब है कि तुम्हें कोई उपयोगी जानकारी हाथ नहीं लगी।’’

ब्योमकेश ने चेयर खींचकर बैठते हुए कहा, ‘‘लेकिन मैं तुम्हारी बात से सहमत नहीं हूँ, क्योंकि इससे मुझे यह पता चला कि जिस समय यह पिन मृतक के हृदय में दागा गया, उस समय मृतक और हत्यारे की दूरी सात-आठ फीट से ज्यादा नहीं हो सकती। एक ग्रामाफोन-पिन इतना हल्का होता है कि इससे अधिक दूरी से दागा जाए तो अपने निशाने पर नहीं लग सकता। और तुम जानते ही हो कि हत्यारे का निशाना कितना अचूक रहा है। प्रत्येक बार हथियार ने अपना काम बखूबी पूरा किया है।’’

‘‘आश्चर्य है,’’ मैंने भी प्रश्न किया, ‘‘हत्यारे ने इतने नजदीक आकर हत्या की है, फिर भी गायब हो गया, पकड़ा नहीं गया?’’

ब्योमकेश बोला, ‘‘यही तो सबसे बड़ी पहेली है। जरा सोचो, हत्या कर देने के बाद वह व्यक्ति भी भीड़ में खड़ा होगा, हो सकता है कि मृतक की लाश को हटाने में सहायक भी रहा हो। फिर भी कोई उसे पकड़ नहीं पाया, कितनी सफाई से उसने अपने को छुपाए रखा।’’

मैंने कुछ देर सोचकर कहा, ‘‘मान लो कि हत्यारे की पॉकेट में एक ऐसा यंत्र है, जो ग्रामाफोन-पिन को दाग सकता हो। जैसे ही वह अपने शिकार के सामने आता है, वह अपनी पॉकेट के अंदर से यंत्र को चला देता हो। अपना हाथ वह पॉकेट में ही रखता हो। किसी को शक भी नहीं होगा, क्योंकि बहुत से लोग चलते समय अपने हाथ पॉकेट में रखते हैं।’’

ब्योमकेश ने कहा, ‘‘अगर ऐसा होता तो वह अपना काम फुटपाथ पर भी कर सकता था। वह अपने शिकार के सड़क पार करने के लिए ही क्यों रुकेगा? दूसरे, मैं किसी ऐसे यंत्र को नहीं जानता, जो बिना कोई आवाज किए त्वचा और मांसपेशियों को चीरकर सीधे हृदय पर आघात कर सकता हो। क्या तुमने सोचा कि इसके लिए यंत्र में कितनी शक्ति की जरूरत होगी?’’

मैं चुपचाप सुनता रहा। ब्योमकेश बहुत देर तक अपनी कोहनियों को घुटनों पर रखे, मुँह हाथों में लिये गहन चिंतन में डूबा रहा। अंत में बोला, ‘‘मुझे लग रहा है, इसका बहुत ही साधारण हल है, जो मेरे हाथों के निकट ही है, लेकिन सामने नहीं आ रहा। जितना मैं प्रयास कर रहा हूँ, उतना ही हाथों से फिसलता जा रहा है।’’

उस रात हत्या के विषय पर और चर्चा नहीं हुई। जब तक ब्योमकेश सोया नहीं तब तक वह विचारों में उलझा रहा। यह जानकर कि रहस्य का हल उसके हाथों के नजदीक पहुँच गया है, जो बार-बार उसके हाथों से फिसला जा रहा है, मैंने भी उसके विचारों में व्यवधान पहुँचाना उचित नहीं समझा।

दूसरे दिन सुबह भी उसका चेहरा परेशान दिखाई दिया। वह जल्दी ही उठ गया और एक कप चाय पीकर चला गया। तीन घंटे बाद जब वह आया तो मैंने पूछ ही लिया, ‘‘कहाँ गए थे?’’

जूते के फीते खोलते हुए ब्योमकेश ने बड़ी व्यस्ततता से उत्तर दिया, ‘‘वकील के पास।’’ मैंने देखा कि वह अब भी विचारों में डूबा है, तो और कोई बात नहीं की। दोपहर भर वह कमरा बंद करके काम में लगा रहा। एक बार मैंने फोन पर बात करते भी सुना। लगभग साढ़े चार बजे उसने दरवाजा खोला और झाँककर चिल्लाया, ‘‘अरे भाई! कल की बात क्या भूल गए? शरीर में काँटे का रहस्य ढूँढ़ने का समय हो रहा है।’’

‘‘वाकई! मेरे दिमाग से भी वह बात एकदम निकल गई थी। ब्योमकेश ने हँसते हुए कहा, ‘‘तो आ जाओ भाई, तुम्हारा ड्रेसिंग कर दूँ। हम लोग ऐसे ही तो जा नहीं सकते?’’

मैंने उसके कमरे में घुसते हुए पूछा, ‘‘क्यों हम ऐसे ही नहीं जा सकते?’’

ब्योमकेश ने एक लकड़ी की अलमारी खोलकर टिन का बॉक्स निकाला। जिसमें से उसने क्रेप का टुकड़ा, छोटी कैंची, गोंद वगैरह कुछ चीजें निकालकर बाहर रख दीं और मेरे गाल पर स्पीरिट तथा गोंद लगाते हुए बोला, ‘‘लोगों में यह कोई अनजानी बात नहीं रह गई कि अजित बंद्योपाध्याय ब्योमकेश बक्शी के परम मित्र हैं, इसलिए थोड़ी सी सावधानी जरूरी है।’’

लगभग सवा घंटे तक ब्योमकेश काम करता रहा। जब उसने अपना काम कर लिया तो मैंने शीशे में जाकर देखा तो चौंककर मेरे मुँह से निकल गया, ‘‘ओरे बाबा! अजित ने मूँछ या फ्रेंचकट दाढ़ी कभी नहीं रखी।’’ जो व्यक्ति शीशे में दिख रहा था, उसकी आयु करीब दस वर्ष अधिक होगी। गालों पर कुछ झाँइयाँ थीं और रंग भी कुछ दबा हुआ था। मैंने किंचित् भय से पूछा, ‘‘यदि पुलिस ने धर लिया तो?’’

ब्योमकेश बड़े धैर्य से बोला, ‘‘डरो नहीं, काबिल से काबिल पुलिसवाला भी तुम्हें पहचान नहीं पाएगा कि तुमने भेष बदला है। यदि तुम्हें विश्वास न हो तो नीचे सड़क पर जाओ और अपनी जान-पहचान के किसी भी व्यक्ति से पूछो कि अजित बाबू कहाँ रहते हैं?’’

मेरा आतंक और भी बढ़ गया। मैंने कहा, ‘‘नहीं-नहीं भाई! इसकी जरूरत नहीं है। मैं जैसा हूँ, वैसे ही जाऊँगा।’’

मैं जब चलने के लिए तैयार हो गया तो ब्योमकेश बोला, ‘‘तुम्हें मालूम भी है, तुम्हें क्या करना है? बस लौटते समय सावधान रहना। हो सकता है, तुम्हारा पीछा किया जाए?’’

‘‘क्या इसकी भी आशंका है?’’

‘‘आशंका को निर्मूल नहीं किया जा सकता। मैं घर पर ही हूँ। प्रयास करना कि काम पूरा करके जल्दी से जल्दी लौट सको।’’

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