ग्रामोफोन पिन का रहस्य – ब्योमकेश बक्शी की जासूसी कहानी

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Author
Saradindu Bandyopadhyay
Language
Hindi

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Description

मैंने पन्नों को पलटकर देखा। एक पेज पर लाल पेंसिल से तीन लाइन की लाइनों पर निशान लगा था। यदि लाल निशान न होता तो शायद साधारण दृष्टि में वह दिखाई भी न देता। विज्ञापन इस प्रकार था—

शरीर में काँटा

यदि शरीर से काँटा निकलवाना चाहते हैं तो कृपया शनिवार साढ़े पाँच बजे ‘वाइट वे लेडलॉ’ के दक्षिण-पश्चिमी कोने पर लगे बिजली के खंभे से कंधों को टिकाए खड़े रहें।

मैंने उस विज्ञापन को कई बार पढ़ा और जब मुझे उसका कोई सिर-पैर नहीं मिला तो मैंने पूछा, ‘‘वह आखिर कहना क्या चाहता है? उस चौराहे के लैंपपोस्ट से कंधा टिकाने पर क्या जादू से शरीर से काँटा निकल जाएगा? उस विज्ञापन का अर्थ क्या है? और क्या है यह शरीर का काँटा?’’

ब्योमकेश ने उत्तर दिया, ‘‘मैं भी तो अभी यह समझ नहीं पाया हूँ। अगर तुम पिछले अखबारों पर नजर डालोगे तो पाओगे कि यह विज्ञापन प्रत्येक शुक्रवार बिना किसी नाम के छप रहा है।’’

‘‘लेकिन इस खबर में संदेश क्या है? आमतौर पर किसी विज्ञापन को छपवाने का कोई उद्देश्य होता है। इस विज्ञापन से तो कुछ पता नहीं चलता।’’

ब्योमकेश बोला, ‘‘पहली नजर में तो यही लगता है कि इसमें कोई संदेश नहीं है, पर कुछ भी नहीं है, यह कैसे मान लिया जाए? आखिर कोई व्यक्ति अपनी मेहनत की कमाई फिजूल के विज्ञापन पर क्यों खर्च करेगा? यदि ध्यान से पढ़ा जाए तो पहला संदेश बिल्कुल स्पष्ट है।’’

‘‘और वो क्या है?’’

‘‘विज्ञापनकर्ता बताना नहीं चाहता कि वह कौन है? विज्ञापन में कहीं कोई नाम नहीं है। अकसर विज्ञापन ऐसे छपते हैं, जिनके विज्ञापनकर्ता का नाम-पता नहीं होता, पर यह सब जानकारी अखबार के दफ्तर में रहती है। अखबार अपनी ओर से एक बॉक्स नं. छापता है। इसमें यह भी नहीं है। तुम जानते होंगे कि जब कोई विज्ञापन छपवाता है तो उसका उद्देश्य यह होता है कि वह खुद मौजूद रहकर लेन-देन पर कोई सौदेबाजी करे। यह भी वही करना चाहता है, पर सौदेबाजी के लिए सामने नहीं आना चाहता।’’

‘‘मैं ठीक-ठीक समझ नहीं पाया?’’

‘‘ठीक है, मैं समझाता हूँ। ध्यान से सुनो। विज्ञापन देनेवाला व्यक्ति इस विज्ञापन के माध्यम से लोगों से यह कहना चाहता है कि ‘हे भाई, सुनो! यदि तुम में से कोई अपने शरीर का काँटा निकाल देना चाहता हो तो अमुक जगह इतने बजे मिलो। और इस मुद्रा में खड़े रहो, ताकि मैं तुम्हें पहचान सकूँ।’ अभी हम इसकी चर्चा न करें कि आखिरकार यह शरीर में काँटा है क्या चीज? इस समय हम इतना ही सोच लें कि हम यदि उस काँटे को निकाल फेंकना चाहते हैं तो हमें क्या करना होगा? उस जगह उतने बजे वहाँ जाएँ और लैंपपोस्ट से कंधा टिकाकर खड़े हो जाएँ। मान लो, तुम उसी समय पर जाकर इंतजार करते हो, तो क्या होगा?’’

‘‘क्या होगा?’’

मुझे यह बताने की जरूरत नहीं है कि शनिवार की शाम को उस स्थान पर कितनी भीड़ हो जाती है। ‘वाइटवे लैडलो’ एक तरफ है, उसके दूसरी तरफ न्यू मार्केट है और चारों तरफ अनेक सिनेमा हॉल हैं। तुम वहाँ निर्धारित समय से लेकर आधा घंटे तक उक्त लैंपपोस्ट से टिककर खड़े रहते हो तो खंभे के आगे-पीछे चलने वाली भीड़ के धक्के तुम्हें खाने पड़ेंगे। लेकिन इतने इंतजार के बाद भी जिस काम के लिए तुम वहाँ खड़े हो, उसका कोई अता-पता तक नहीं और जादू से तो शरीर का काँटा निकल नहीं सकता! अंत में, तुम निराश होकर सोचने लगते हो कि किसी ने तुम्हें क्या मूर्ख बनाया है? तब एकाएक तुम्हें अपनी पॉकेट में एक रुक्का मिलता है, जो भीड़ में से किसी ने बड़ी सफाई से तुम्हारी पॉकेट में डाल दिया है।’’

‘‘और फिर?’’

‘‘फिर क्या? बीमार और दवा देनेवाला आपस में मिलते नहीं, फिर भी इलाज का नुस्खा मिल जाता है। तुम्हारे और विज्ञापनदाता के बीच संपर्क कायम हो जाता है, लेकिन तुम्हें नहीं पता लगता कि वह कौन है? और देखने में कैसा लगता है?’’

मैं कुछ देर उसकी बातों पर ध्यान देता रहा और बोला, ‘‘मान लो, मैं तुम्हारे वर्णन को सही मान भी लूँ, तो भी क्या साबित होता है इससे?’’

‘‘सिर्फ यह कि ‘शरीर में काँटें’ का सरगना हर कीमत पर अपनी पहचान को छुपाए रखना चाहता है और जो व्यक्ति अपनी पहचान उजागर करने में हिचकिचाता हो तो जाहिर है कि वह कोई सीधा-सादा व्यक्ति हर्गिज नहीं है।’’

मैंने अपना सिर हिलाकर कहा, ‘‘यह तुम्हारा केवल अनुमान है। इसका कोई सबूत नहीं कि जो तुम कह रहे हो, वह सही हो।’’

ब्योमकेश उठ खड़ा हुआ और फर्श पर चहलकदमी करते हुए बोला, ‘‘सुनो! सही अनुमान सबसे बड़ा सबूत होता है। जिसे तुम जाँच पर आधारित सबूत कहते हो, उसे तुम यदि बारीकी से अध्ययन करो तो पाओगे कि वह अनुमानों के एक क्रम के अलावा कुछ नहीं है। परिस्थिति पर आधारित प्रमाण बौद्धिक अनुमान नहीं है तो क्या है? फिर भी इसके आधार पर कितने ही लोगों को आजन्म कैद की सजा हुई है।’’

मैं चुप रहा, किंतु हृदय से उसके तर्कों को स्वीकार नहीं कर पाया। एक अनुमान को प्रमाण मान लेना आसान नहीं लगा, लेकिन फिर ब्योमकेश के तर्कों को यों ही झुठला देना भी मुश्किल था। इसलिए मैंने निर्णय किया कि इस समय यही बेहतर होगा कि प्रतिक्रिया के रूप में मैं फिलहाल कुछ न कहूँ। मैं जानता था कि मेरी चुप्पी ब्योमकेश को उद्वेलित करेगी और जल्दी ही वह कोई तर्क प्रस्तुत करेगा, जिनको मैं किसी तरह भी अस्वीकार नहीं कर पाऊँगा।

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